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कुमाऊँ

कोरोना वायरस कैसे बदलता है अपने जीनोम अनुक्रमण को

म्युटेशन (उत्परिवर्तन) किसी जीन के न्यूक्लियोटाइड में होने वाले अनुक्रम का बदलाव है। DNA या RNA में संपूर्ण सूचनाओं या निर्देशों का जो सेट होता है उसे जीनोम कहते है। वैज्ञानिक इसी जीनोम का अध्ययन कर म्युटेशन का पता लगाते है जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत DNA/RNA अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है। इसके अंतर्गत DNA/RNA में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता चलता है। डीएनए या आरएनए में कई अलग-अलग उत्परिवर्तन हो सकते हैं लेकिन DNA की तुलना में RNA में बड़े म्युटेशन होने की संभावना नगण्य ही होती है।

अभी हमारा देश भयंकर कोरोना महामारी का सामना कर रहा है हाल में हुए अनुसंधान बताते है कि कोरोना वायरस ने कई बार अपने जीनोम अनुक्रमण को बदला है और नए म्युटेशन के साथ अधिक संक्रामक रूप से सामने आया है। कोरोना एक आरएनए वायरस है और माना जाता है कि DNA वायरस की तुलना में RNA वायरस कम स्टेबल होते है। कम स्टेबल होने के कारण ही कोरोना जल्दी से अपने आप को म्युटेट कर पाता है लेकिन ऐसा भी नही है सभी म्युटेशन वायरस को अधिक घातक बनाते है कुछ म्युटेशन वायरस को कम संक्रामक या निष्क्रिय भी बना देते है।

वायरस म्युटेशन का सबके बड़ा कारण तो वायरस की कार्यप्रणाली में ही छिपी है। जैसा कि हम जानते है वायरस किसी जीव कोशिका में प्रवेश कर अपनी प्रतिलिपि तैयार करने लगता है। प्रतिलिपि बनाने के क्रम में कभी-कभी वायरस अपने ही जीन को बेतरतीब तरीके से कॉपी कर लेते है और यही कॉपी त्रुटि उनके आनुवंशिक परिवर्तन के कारण बन जाते हैं। समय के साथ वायरस की आनुवंशिक प्रतिलिपि बनाने वाली त्रुटियां, वायरस की सतह प्रोटीन या एंटीजन में परिवर्तन का कारण बन सकते हैं।

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जब वायरस किसी होस्ट में प्रवेश करता है तो वायरस का सामना उस जीव की प्रतिरक्षा प्रणाली से होता है ऐसी स्थिति में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस को पहचानने और उससे लड़ने के लिए एंटीबाडी का उपयोग करती है। वायरस भी हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने के लिए उत्परिवर्तित करने लगता है। यह ठीक वैसी ही है जैसा जब दुश्मन आपपर आक्रमण करता है तब आपको दुश्मन की रणनीति का सटीक पता चलता है, यदि आपका शत्रु आप पर आक्रमण ही न करें तो आप उसकी रणनीति का सही आंकलन नही कर सकते है। वायरस भी इसी नीति का पालन करते है. हालांकि ऐसी स्थिति में वायरस को बड़ा नुकसान भी होता है लेकिन अपनी अगली पीढ़ी को बेहतर रणनीतियों से लैस करने में सफल भी हो जाते है।
ऐसा भी नही है कि कोई वायरस किसी जीव में प्रवेश करें और उसके लिए पूरा मैदान खाली ही हो संभव है वहाँ कोई अन्य वायरस भी मौजूद हो सकता है। जब दो अलग-अलग जीनोम अनुक्रमण वाले वायरस का मिलन होता है तब भी वायरस में नए म्युटेशन होने की संभावना बन सकती है। इस तरह के म्युटेशन सामान्यतः समान प्रजातियों वाले वायरस या खंडित जीनोम वाले वायरस में देखे जाते है। इस प्रकार के म्युटेशन इन्फ्लूएंजा वायरस में बड़े पैमाने पर देखे जाते रहे है वैसे कोरोना वायरस में खंडित जीनोम नही होते यह वायरस लंबे एकल जीनोम से बना है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है जब दो कोरोना वायरस एक ही सेल को संक्रमित करते है तो वे पुन: संयोजन कर सकते है। वैसे कोरोना वायरस ने पुनः संयोजन द्वारा म्युटेशन कर इन वैज्ञानिकों को सही साबित कर दिया है हो सकता यह म्युटेशन प्राकृतिक ही हो। म्युटेशन जीवन का आधार है. इसके बिना जीवन संभव ही नही। अनुवांशिक गुण जैसे रंग-रूप, कद-काठी, लिंग, हमारे बालों का रंग, आंखों का रंग या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती है यह सभी आनुवांशिक गुण म्युटेशन के कारण ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती है। कल्पना कीजिए इस सृष्टि में यदि एक ही प्रकार के जीव होते, एक ही प्रकार का भोजन, एक ही प्रकार का कार्य, एक ही प्रकार के परिवेश का निवास आप इससे उबाऊ हो जाते। प्रकृति भी एकरसता से ऊबकर परिवर्तन करती रहती है यही प्रकृति का नियम है जो मनुष्यों, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, वायरसों सभी पर लागू होता है।
अब बड़ा सवाल है जब वायरस इतनी जल्दी अपने आप को म्युटेशन कर अपग्रेड हो रहे है तब हम उनका मुकाबला कैसे कर सकते है ?
सरल जवाब है – हम सब को वायरस से थोड़ा ज्यादा अपग्रेड होना है। अपग्रेड कैसे होना है हम सब को पता ही है.
दो ग़ज़ की दूरी, मास्क जरूरी,हाथों को साफ पानी से धोते रहे,भीड़ भाड़ से बचते रहे, खान पान का रखे ध्यान,सुरक्षित रहेंगे तभी बचेगी जान।

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प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड

(लेखक वैज्ञानिक शिक्षा,प्रचार-प्रसार एवं कोरोना से बचाव के तरीकों से लोगों को जागरूक कर रहे है)

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